...

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उम्मीद
कुछ दिन हुए, फल लेने गए बाजार में,
जद्दोजहद के बाद एक बाबा को चुना...
मैंने उस लंबी कतार से !
तरबूज का ठेला था उनका..
बालों से सफेदी झांक रही थी !!
तपती दोपहर में,पसीने से तरबतर
जैसे जिंदगी दो पल सुकून मांग रही थी !!!
मैं असमंजस में थी.....
एक मीठा तरबूज जो चुनना था !
वह भांप गए...