किसीको।
वह एक हूनर जो नहीं आता किसको,
महफिलों में चुप रहना नहीं आता किसको।
मैं मेरे हर रंज,हर गम से वाक़िफ हूं बढ़िया,
मैं बाजारु थोड़ी हूं जो ज़ख्म दिखा दूं किसको।
मैं अपने आप में एक क़िताब हूं कमाल की,...
महफिलों में चुप रहना नहीं आता किसको।
मैं मेरे हर रंज,हर गम से वाक़िफ हूं बढ़िया,
मैं बाजारु थोड़ी हूं जो ज़ख्म दिखा दूं किसको।
मैं अपने आप में एक क़िताब हूं कमाल की,...