...

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सफ़र
हर शय लगा है यारों हमें, यूं आजमाने में
क्या खबर थी रोटी छूट जाएगी, रोटी कमाने में

जो बैठ जाती हूं दो पल, चाय की चुस्की लगाने में
देर हो ही जाती है यारों, फिर कोई जिम्मेदारी निभाने में

ईंट दर ईंट जोड़ती रही, मैं मकां बनाने में
चूक जाती हूं अक्सर, मैं मकां को घर बनाने में

तमाम ताखे और आला तो बना लिए मकान में
रह जाता है मगर हर बार ये, गुलदस्तों से सजाने में

खुशबू से भर जाते है आंगन, चाहे रसोई बनाने में
मगर देर हो जाती है अक्सर, बर्तन करीने से लगाने में

दिन भर जो भटकती रही मैं, जिदंगी की तलाश में
खुशियां ढूंढना ही भूल गई, फिर गुलाब और पलाश में

बड़े शिद्दत से बीते दिन, फुर्सत के इंतजार में
जाने इतवार कब बीत गया, इतवार के इंतजार में

एक सुबह सुकून की होगी, इस एतबार में
कई रात हमने नींद–चैन खोई, इस इंतजार में

जाने कब कड़वी होती गई जुबां, जिंदगी की कड़वाहटों में
सब्र कर के भी हमने देख लिया, मीठे फल के इंतजार में

सींचते रहे हम सेहरा भी, फसल के इंतजाम में
कांटे मगर बिखरे मिले मुफ्त, इस गुलिस्तान में

घिस– घिस के जिन पत्थरों को, मैंने रखा इबादत में
चुभते रहे सफ़र में सरे राह, वही सबाब में

किसी सुबह तो होगी, ख्वाबों की ताबीर हयात में
उम्र तमाम बीत गई मेरी, बस इस इंतजार में

सबक ज़िंदगी का ढूंढती रही मैं, अब तक क़िताब में
एक झटके से सब सीख लिया, ज़िंदगी के अजाब में

शिकस्त जितनी भी मिली मुझे अब तलक जंगे हयात में
सजा कर रख लिया मैंने उन्हें, मुस्कुराहट के लिबास में

रवानगी जिंदगी की मेरी है, अब हरदम इस तलाश में
हर रात निकलती है सुबह रौशनी की आस में
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© Ranjana Shrivastava
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