सफ़र
हर शय लगा है यारों हमें, यूं आजमाने में
क्या खबर थी रोटी छूट जाएगी, रोटी कमाने में
जो बैठ जाती हूं दो पल, चाय की चुस्की लगाने में
देर हो ही जाती है यारों, फिर कोई जिम्मेदारी निभाने में
ईंट दर ईंट जोड़ती रही, मैं मकां बनाने में
चूक जाती हूं अक्सर, मैं मकां को घर बनाने में
तमाम ताखे और आला तो बना लिए मकान में
रह जाता है मगर हर बार ये, गुलदस्तों से सजाने में
खुशबू से भर जाते है आंगन, चाहे रसोई बनाने में
मगर देर हो जाती है अक्सर, बर्तन करीने से लगाने में
दिन भर जो भटकती रही मैं, जिदंगी की तलाश में
खुशियां ढूंढना ही भूल गई, फिर गुलाब और पलाश में
बड़े शिद्दत से बीते दिन, फुर्सत के...
क्या खबर थी रोटी छूट जाएगी, रोटी कमाने में
जो बैठ जाती हूं दो पल, चाय की चुस्की लगाने में
देर हो ही जाती है यारों, फिर कोई जिम्मेदारी निभाने में
ईंट दर ईंट जोड़ती रही, मैं मकां बनाने में
चूक जाती हूं अक्सर, मैं मकां को घर बनाने में
तमाम ताखे और आला तो बना लिए मकान में
रह जाता है मगर हर बार ये, गुलदस्तों से सजाने में
खुशबू से भर जाते है आंगन, चाहे रसोई बनाने में
मगर देर हो जाती है अक्सर, बर्तन करीने से लगाने में
दिन भर जो भटकती रही मैं, जिदंगी की तलाश में
खुशियां ढूंढना ही भूल गई, फिर गुलाब और पलाश में
बड़े शिद्दत से बीते दिन, फुर्सत के...