...

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आदत
हमारी फितरत
तौ देखो
कि पहले हम उस
खूबसूरत जहाँ के.. बाशिंदे थे
और आज न जाने हमें
ये किस दुमिया मे
पंहुचा दिया गया है
जहाँ न चहल पहल है
न शोर शराबा है बस सब
तरफ सन्नाटो का
अधिपत्य है... मज़े की बात ये रही.
कि यहां वे दर्दीली और ह्रदय भेदक आवाज़ भी कानो तक नहीं पहुंच पाती
जिन्हे सुनने की मेरी पुश्तैनी आदत थी