" क्यू ख़ामोश हू मैं......? "
कौन कर रहा है सितम मेरे बेकसूर जज्बातों पर, कैसे पता लगाऊं मैं.....?
सिमट कर रह गई है मेरी हसरते, ये बची बचकानी -सी अदाएं किस पर जताऊ मैं...?
फिर ये ख़ामोश दिल की वादियों में बिन आवाज़ शोर कैसा....,
ये राज है सितम -ए -मोहब्बत का, तो इस अधूरे प्यार की दास्तां किसे सुनाऊं मैं.....?
जमाना गैर सा लगता है, ए मालिक तुझे और कितने नक़ली चेहरे गिनवाऊ मै....?
ता हद...