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साहस
ज्यादा तो बड़ा नहीं लेकिन , मैने भी जग को देखा है।
हार और जीत के ठीक मध्य, डर की पतली सी रेखा है।
गर बनना चाहो सफल, राह तुमको ये तय करना होगा।
गर लक्ष्य तुम्हें पाना है तो,डर से आगे बढ़ना होगा।

जो नाविक खुद सागर की ऊँची लहरों से डर जाएगा।
कैसे सवार को फिर बोलो वो नाविक पार लगाएगा।
वो ही नविक है सफल कि जो उन लहरों से टकराएगा।
सारे सवारियों को वो सुरक्षित मंजिल तक पहुँचाएगा।

बार-बार गिरने उठने से भी ना जो घबराएगा।
बिन थके बिन डरे वही शख्स फिर ऊपर बढ़ता जाएगा।
पर्वत को लाँघ वही सकता,होता जिसमें अदम्य साहस।
जो देख के पर्वत डर जाए, पर्वत पे क्या चढ़ पाएगा।

साहस है योद्धा का सम्वल,मरने न मारने से जो डरे ।
वो देगा साहस का परिचय और युद्ध जीतकर आएगा।
पर समर भूमि में जाकर जो सैनिक घावों से डरता हो।
वो डरा हुआ सैनिक बोलो क्या युद्ध जीतकर आएगा?

बनना है अगर तुमको ऊंँचा,तो सोच भी अपनी रख ऊपर।
जो होगी सोच तेरी ऊंँची, तू भी ऊपर बढ़ जाएगा।
वो वायुयान का चालाक फिर किस भांँति बन सकेगा बोलो,
जो वायुयान में चढ़कर भी ऊँचाई से डर जाएगा।

वो ऊँच-े ऊँचे भवन और वो ऊँची-ऊंँची मीनारें ।
पर्वत की भाँति खड़ी देखो वो लालकिले की दीवारें।
जो उसे बनानेवाला भी,गिरने से मरने से डरता,
तो ऊँचे-ऊँचे भवन बनाकर वो इतिहास नहीं गढ़ता।

कोई लहरों से डर जाते हैँ,कोई लहरों से लड़ जाते हैँ।
कोई डर से पीछे हट जाते कोई पर्वत पे चढ़ जाते हैँ।
जो डर जाएंँ ऊँचाई से मुंँह लटकाकर घर आते हैँ।
उड़ने का साहस जो कर लें,ऊँची उड़ान भर जाते हैं।

मानव मन का है परम सत्य,डर व्याप्त सबों के अंदर है।
डर से जो आगे बढ़ता है,फिर बनता वही सिकंदर है।
तो कर लो निर्णय त्वरित आज से,डर से तुम न घबराओं,
डर को पीछे छोड़ बढ़ो आगे,साहस को अपनाओ।
© Kaushal