...

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साहस
ज्यादा तो बड़ा नहीं लेकिन , मैने भी जग को देखा है।
हार और जीत के ठीक मध्य, डर की पतली सी रेखा है।
गर बनना चाहो सफल, राह तुमको ये तय करना होगा।
गर लक्ष्य तुम्हें पाना है तो,डर से आगे बढ़ना होगा।

जो नाविक खुद सागर की ऊँची लहरों से डर जाएगा।
कैसे सवार को फिर बोलो वो नाविक पार लगाएगा।
वो ही नविक है सफल कि जो उन लहरों से टकराएगा।
सारे सवारियों को वो सुरक्षित मंजिल तक पहुँचाएगा।

बार-बार गिरने उठने से भी ना जो घबराएगा।
बिन थके बिन डरे वही शख्स फिर ऊपर बढ़ता जाएगा।
पर्वत को लाँघ वही सकता,होता जिसमें अदम्य साहस।
जो देख के पर्वत डर जाए, पर्वत पे क्या चढ़ पाएगा।

साहस है योद्धा का सम्वल,मरने न मारने...