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"खामोशी लगी गूँजने" (ग़ज़ल)
ख़ामोशी लगी गूँजने, बुलाता है कोई जैसे,
ना था अरबाब-ए-हिम्मत, के जाता वहीं फिरसे,
ख़ामोशी लगी गूँजने…..
मौज-ए-रवाँ दरिया की, दरख़्त-ए-चिनार जहाँ,
महकती-सी वो हवाएँ, ग़ुलाबी हुई ग़ज़ल जैसे,
ख़ामोशी लगी गूँजने…..
फिर हसरत-ए-जिगर, चाँदनी आब-ए-रवाँ पे,
मैं हूँ, ये रात, ये तन्हाई, वो ही नहीं है जैसे,
ख़ामोशी लगी गूँजने, बुलाता है कोई जैसे,
ना था अरबाब-ए-हिम्मत, के जाता वहीं फिरसे,
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
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