...

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ग़ालिब़न
बेबसी का रोना हर बात पर ही रोना क्यूँ
उड़ान वो भी भरते हैं जिनके पर नहीं होते

ख़्वाहिश तो बहुत थी कि तुझे गले से लगालूँ
क़ाश कि, तेरे हाथों में ये खंजर नहीं होते

बहुत सुकून है दिन में बेख़ौफ़ नींदें रातों में
हैं कुछ दरवेश से घर वो जिनके द़र नहीं होते

सभी पर इतना भरोसा भी अच्छा नहीं,हमदम
राह में मिलने वाले सभी हमसफर नहीं होते

कुल्हाड़ी! चलते हुए इतना गुमान भी ना कर
तेरी हस्ती ही क्या होती जो ये शजर नहीं होते


© बदनाम कलमकार