...

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आयतें
पढ़नी थी कुछ आयतें
पर आती नहीं थी
गए तेरे दर पे कई बार
पर हाथ में बाती नहीं थी
अंदर जाने से रोका गया मुझे
मेरी तेरी जाति जो मेल खाती नहीं थी
पढ़नी थी कुछ आयतें….
हृदय को बाती बना के जलाया बहुत
जैसे भी आता था बताना..बताया बहुत
और तू जानता था ऐ खुदा
कि वो दुआ मेरी ‘जाती ’नहीं थी
पढ़नी थी कुछ आयतें…