*शुकूं की छाव में..*
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।
जो अपनापन बचा है, अभी तक गांव में।।
थक सी गई थी जिंदगी, शहर की दौड़ में।
अपना कोई मिला नहीं, मतलब कि होड़ में।।
फिर ज़ख्म न कुरेदना, दिल की घाव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।
मां के हाथों की रोटियां, पिता का वो दुलार।
मिलता रहे उमर भर, उनके रहे उपकार।
हम छोड़ आए शहर, कॉरोना के दांव में।
कट...
जो अपनापन बचा है, अभी तक गांव में।।
थक सी गई थी जिंदगी, शहर की दौड़ में।
अपना कोई मिला नहीं, मतलब कि होड़ में।।
फिर ज़ख्म न कुरेदना, दिल की घाव में।
कट जाए उम्र काश, इस सुकूं की छाव में।।
मां के हाथों की रोटियां, पिता का वो दुलार।
मिलता रहे उमर भर, उनके रहे उपकार।
हम छोड़ आए शहर, कॉरोना के दांव में।
कट...