आसान है क्या
सारी रात करवटों में कट जाना आसान है क्या,
अपनी बाहों में खुद ही सिमट जाना आसान है क्या।
मेरी रूह जो अब बिछड़ी हुई लगती है मुझसे,
उसका बेहिसाब हिस्सों में बँट जाना आसान है क्या।।1
फिर किसी से इश्क़ करना इतना ग़लत क्यों है,
जब दिल पर लकीरों का ज़ोर नहीं चलता।
हर दफ़ा वो और मैं आमने-सामने होते हैं,
फिर चाहे ये पाँव उसकी ओर नहीं चलता।।2
उसके नज़दीक होने की वाहिमा करना भी तो इश्क़ है ना,
तो उसके सामने आने पर...
अपनी बाहों में खुद ही सिमट जाना आसान है क्या।
मेरी रूह जो अब बिछड़ी हुई लगती है मुझसे,
उसका बेहिसाब हिस्सों में बँट जाना आसान है क्या।।1
फिर किसी से इश्क़ करना इतना ग़लत क्यों है,
जब दिल पर लकीरों का ज़ोर नहीं चलता।
हर दफ़ा वो और मैं आमने-सामने होते हैं,
फिर चाहे ये पाँव उसकी ओर नहीं चलता।।2
उसके नज़दीक होने की वाहिमा करना भी तो इश्क़ है ना,
तो उसके सामने आने पर...