“हिमायत में भी नहीं, जिस्म आजकल"
इम्तिहान में, सब्र है, हमनशी,,
मर्ज क्या है ?
मर्ज है, दिलकशी,,
ये खून भी, शराफत,
दिखाए कब तक,,
चाहता है, निकलना बाहर,
कहां ये, जान फंसी,,
कहीं कुर्बानी, “नसीब",
हमारे तो नहीं,,
चलो बरकरार रहे,
उनकी हंसी...
बेजार हैं, “ख्वाहिशे",
इन्हें मनाए कैसे,,
चाहती हैं सुलाना, उम्र भर,
खुद को, जगाएं कैसे,,
हिमायत में भी नहीं,
ये जिस्म, आजकल,,
लेकिन मौत के, पेहलू में,
खुद को, सुलाएं कैसे,,
मेरा, बे-महर भी, रहता है,
जमीं पर कहीं,,
लेकिन, उसरत ये है,
ऊपर बुलाएं कैसे....✍️
© #Kapilsaini
मर्ज क्या है ?
मर्ज है, दिलकशी,,
ये खून भी, शराफत,
दिखाए कब तक,,
चाहता है, निकलना बाहर,
कहां ये, जान फंसी,,
कहीं कुर्बानी, “नसीब",
हमारे तो नहीं,,
चलो बरकरार रहे,
उनकी हंसी...
बेजार हैं, “ख्वाहिशे",
इन्हें मनाए कैसे,,
चाहती हैं सुलाना, उम्र भर,
खुद को, जगाएं कैसे,,
हिमायत में भी नहीं,
ये जिस्म, आजकल,,
लेकिन मौत के, पेहलू में,
खुद को, सुलाएं कैसे,,
मेरा, बे-महर भी, रहता है,
जमीं पर कहीं,,
लेकिन, उसरत ये है,
ऊपर बुलाएं कैसे....✍️
© #Kapilsaini