...

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ढ़लती हुई साँझ देखो चुप कितनी है.
ढ़लती हुई साँझ देखो चुप कितनी है,
हुआ है क्या कैसे पूछे नाराज इतनी है.

आये नहीं जो आँखों में इंतज़ार दे के,
फिक्र दिल को उस की क्यों करनी है.

इश्क़ कर बहुत किया तस्व्वुर उनका,
दिल तोड़ने की एक बाजी जितनी है.

ना मिलूँगा अगर आई भी तो मिलने,
कह दूँगा इस सफ़र की मंज़िल इतनी है.

दिल मेरा तेरा टूटा तारा होगा अब,
अँधेरी रातो की मेरी दुआ इतनी है.

ढ़लती हुई साँझ देखो चुप कितनी है,
हुआ है क्या कैसे पूछे नाराज इतनी है.