...

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मन की आवाज़
1.आजकल बहुत घुटन सी है। सब दरवाजे खुले है, पर एक अदृश्य दीवार भी है।
दीवार तो फिर भी हटा दिया पर उसके पीछे एक जंजीर भी है।
रोक तो लिया इस पांचभौतिक शरीर को, पर मत भूलो मेरे विचार भी है।
2. बहुत कुछ सोचा था मैंने, सपने थे मेरे हजार, पर भूल गयी समाज भी है।
मैं तो छोटी सी उत्साह से भरी कस्ती थी, पर भूल गई मुझे डुबाने वाला जहाज भी है।
सांपों से तो भर दिया पूरा रास्ता, पर भूलो मत यहां बाज़ भी है।
3. शब्द तो बहुत है मेरे पास, पर बोलने के लिए मुँह नहीं है।
कहेना अगर चाहूँ भी, पर केहने के लिए हिम्मत नहीं है।
सिल तो दिया है होंठो को, पर खुलने में अब समय बहुत कम है।
4. हर बार अपनी गलती मान ली है, आवाज उठाने में डर बहुत है।
गवा दी हर खुशी को, क्यूंकि उसके बाद की उदासी बहुत है।
बोलने पे अब मजबूर तो कर दिया, पर मेरी खामोशी बहुत है।
5.कब तक ऎसे चलेगा अब और नहीं सहा जाता।
इतना तो समझ लो, अब और छुपके नहीं रोया जाता।
हर बात आपको बतानी है, अब और छुपाया नहीं जाता।
6.क्या रखा है इस दिखावे की दुनिया में, यहाँ सब घीनोना है।
अरे! नहीं बनना मुझे आदर्श, एक सामान्य सा जीवन जीना है।
एक छोटा सा परिवार है, उसे ही खुशहाल बनाना है।

इतनी सी प्राथना है विनती है please सुन लो।
कुछ पल के लिए अपनी जिन्दगी हमारे साथ गुजार लो।।

© psycho