मन की आवाज़
1.आजकल बहुत घुटन सी है। सब दरवाजे खुले है, पर एक अदृश्य दीवार भी है।
दीवार तो फिर भी हटा दिया पर उसके पीछे एक जंजीर भी है।
रोक तो लिया इस पांचभौतिक शरीर को, पर मत भूलो मेरे विचार भी है।
2. बहुत कुछ सोचा था मैंने, सपने थे मेरे हजार, पर भूल गयी समाज भी है।
मैं तो छोटी सी उत्साह से भरी कस्ती थी, पर भूल गई मुझे डुबाने वाला जहाज भी है।
सांपों से तो भर दिया पूरा रास्ता, पर भूलो मत यहां बाज़ भी है।
3. शब्द तो बहुत है मेरे पास, पर बोलने के लिए मुँह...
दीवार तो फिर भी हटा दिया पर उसके पीछे एक जंजीर भी है।
रोक तो लिया इस पांचभौतिक शरीर को, पर मत भूलो मेरे विचार भी है।
2. बहुत कुछ सोचा था मैंने, सपने थे मेरे हजार, पर भूल गयी समाज भी है।
मैं तो छोटी सी उत्साह से भरी कस्ती थी, पर भूल गई मुझे डुबाने वाला जहाज भी है।
सांपों से तो भर दिया पूरा रास्ता, पर भूलो मत यहां बाज़ भी है।
3. शब्द तो बहुत है मेरे पास, पर बोलने के लिए मुँह...