कौन हूं मैं...
यूं ही देखा खुद को जब आईने में,
पहचान ना सकी खुद को मैं।
ये झुर्रियां कैसे पड़ गई आंखों के किनारे
मुस्कुराहट में भी बल पड़ते से दिखे मुझे,
माथे पर तो सलवटें सी आयी नज़र
कांधे भी अब झुकते हुए से दिखे मुझे।
फिर दो पल रुक गई बिंदी लगाने को,
और आवाज़ भी ना दे सकी खुद को मैं।।
सहमी...
पहचान ना सकी खुद को मैं।
ये झुर्रियां कैसे पड़ गई आंखों के किनारे
मुस्कुराहट में भी बल पड़ते से दिखे मुझे,
माथे पर तो सलवटें सी आयी नज़र
कांधे भी अब झुकते हुए से दिखे मुझे।
फिर दो पल रुक गई बिंदी लगाने को,
और आवाज़ भी ना दे सकी खुद को मैं।।
सहमी...