...

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तू मेरा आभूषण
मीलो लंबी राहें.... किया अन्वेषण,
एक मोड़ पर हो गया प्रवण;
उसी दिशा में किया आरोहण,
क्या था पता होगा यहीं मेरा वरण।
हर जन ने किया इसका श्रवण,
क्यूँ कहा सबसे, है मुझमें लावण;
दीन दुनिया का हो गया क्षेपण,
हो गया जब मेरा मन हरण।
मन सुवर्ण, मिठास कण कण,
हर बात का ख्याल, रखा ध्यान क्षण क्षण;
पग पग मिला तुझसे प्रेक्षण,
क्या कभी चुका पाऊंगी ऋण ।
साथ दिया संग किया निर्वहण,
धन्य हुई पा तेरा समर्पण;
साकार हुई पा तेरा शरण ,
झांका जब जब मन दर्पण,
देखा तुझे बना हुआ मेरा आवरण।
करुण, सगुण, निपुण दूं क्या विशेषण,
इस बहती धारा का तू दरिया आकर्षण;
लब मौन, नैनों ने दिया मूक निमंत्रण,
तू मेरा सबसे प्यारा आभूषण।