...

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ये और बात हैं
हमारी आंखों के नूर है जो
उनके नजरों कर्म के हम काबिल नहीं ,ये और बात हैं

मैं वही तुम वही चाहत भी वही
दिल खोल कर कभी हम मिलते नहीं , ये और बात हैं

तेरी खुशी के सिवा कभी कुछ मांगा नहीं
तेरी चाहत के सिवा कभी कुछ चाहा नहीं ,ये और बात है

जाहिर कर तो दूं सारे जज़्बात तेरे सामने
ज़ुबान से निकलते नहीं अल्फाज़ , ये और बात हैं

है बहुत लोग उनकी चाहत की महफ़िल में
एक हम बदनसीब ही उनमें शामिल नहीं , ये और बात हैं

इतना कुछ है कहने को कितना कुछ हैं सुनने को
तुम सुनते नहीं हम कहते नहीं , ये और बात हैं

नहीं लिखती कलम भी कोई दूजा शब्द
फिर भी तेरा प्यार हमने पाया नहीं , ये और बात हैं ।।
©अनोखी