...

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ज़िद करता!
कोई होता
जो ज़िद करता!

साथ अपने चलने की
कुछ दूर जरा यूं ही टहलने की
चलते-चलते.…..
अपना सिर मेरे कॉधे पे रखता
धीरे से मेरा हाथ पकडता
और मेरी आंखों से कहता
उम्र भर इनमें रहने की।

ज़िद करता!
आस्मां को चुनर बनाने की
चाॅद को जूढे में सजाने की
तारों से आंचल सजाता
तो कभी हट करता
रेत का महल बनाने की।

ज़िद करता!
कभी झूठ-मूठ रूठ जाने की
और सच में मनाने की
तरह-तरह के नखरे लेकर
ज़िद...