...

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कांटा
एक कांटा उगा तने पर गुलाब के...
सुंदरता वो उसकी बढ़ाने लगा !

जब चोट लगी उसे छूने से....
लोगों ने सवाल उसपे तब कड़े किए !

क्या है गलती मेरी ?उसने हस कर कहा....
पर जवाब में उसे कुछ भी ना मिला !

गुलाब ने भी जब उसको ताने कसे....
उसी पल से दोनो अलग हो गए !

उस रात जोर से थी बिज़ली गिरी....
सोया था जो चैन से,उसकी भी नींद उड़ी !

अखिर काट ही दिया कांटे को माली ने...
और फेंक दिया कचरे मैं कहिं !

वो कचरे में पड़ा बस रोता रहा...
गुलाब को ही उसने बस याद था किया !

जब चोट उसे लगी,कोई सुन ना सका...
तड़पा वो भी था मगर,कोई समझ ना सका !

एक दिन लोगो ने जब कचरा जलाया...
धुएं के साथ वो भी उपर उड़ा !

गया दूर निकल पहुंचा खाली जमीन पर...
खुशी क्या है होती,उसे तब ये मालूम हुआ !

अखिर मैं ही सही,सूकून उसे भी मिला...
अकेला ही सही , पर वो खुश था वहां !

© @mrinalini_rana