...

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यादों के झरोखों से
कल उलझ पड़ीं उंगलियां मेरी
मेरे ही विचारों से,
विचारों ने कहा लिखो ना,
उंगलियों ने कहा आदेश तो दो।

डूब गए विचार मेरे, मेरी सोच की सागर में,
और गढ़ने लगे शब्दों को,ढूंढ ढूंढ कर।

एक जो शख्स है,निरंतर बढ़ता अपने राहों पर,
अपने अतित को भी ढूंढता रहा,
और कुछ लोग अपनी जिंदगी से लड़ते रहे।
कुछ लोग अपनी जिंदगी सँवारते रहे,और
कुछ अपनी जिंदगी के सँवरने का गुरुर पालते रहे।

कहते हैं कि कितना भी आकाश में उड़ो,पाँव जमीं पर होने चाहिए।
पर कुछ लोग हर किसी की भवनाओं का मजाक बनाते रहे।

सभी नहीं थे।

उनमें से कुछ हीरे बन चमकते रहे,
और दशकों तक अपनी,यादों को निखारते रहे।

आज ऐसा लगता है,की ये जो मुस्कान आई है चेहरे पर
ये बस यूँही नहीं, उनके गहरे व्यक्तित्व का असर है।
माना कि शब्दों की संख्या में कमी आ गई है।
पर वजन भी बहुत बढ़ा है शब्दों का।
कभी मुस्कुराता हुँ,कभी भीगे हुए पलकों को छुपाता हुँ।
सोचता हुँ कैसे लोग दशकों साथ रह कर चोट दे जाते हैं।
और कुछ लोग दशकों खोकर भी यादों को सजाते हैं।
शब्द कम पड़ रहे हैं विचारों के आगे,
आज फिर
विचारों का विजय हुआ,ऊँगलियाँ निहारती रह गईं।

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