...

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तुम्हारे बिन
चलो बस चल दिये अब हम, तुम्हारी ज़िंदगी से दूर
जो चाहो देख लो जी भर के, बस एक बार हमको तुम

हुआ रिश्ता ख़त्म, जो भी हमारे दरम्यान था आज
हाँ मैंने कर दिया आज़ाद, हर एक बंधन से तुमको आज

नहीं खुदगर्ज़ मैं इतनी, कि तुमको बांधकर रखूँ
वो रिश्ता भी है क्या रिश्ता, जो मन को जोड़ नहीं सकता

करी कोशिश बहुत मैंने, तुम्हारे साथ खुश रहती
मगर हर बार तुम्हारा अहम, स्वाभिमान मेरा कुचल गया

नहीं अब तर्क वितर्क कोई, न ही शिकवा शिकायत है
तुम्हारे अपने फ़लसफ़े हैं, वो सब तुमको मुबारक़ हैं

कि अब जब सोच लिया है तुमने, तुम्हें मुझसे न कोई मतलब
तो जीना सीख जाऊँगी मैं भी, तुम्हारे बिन धीरे-धीरे
© ऊषा 'रिमझिम'