...

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" उथल-पुथल "
" उथल-पुथल "

समन्दर को कभी खामोश देखा है..?
सदियों से उसे बेइंतहा बेक़रार देखा है..!

कुछ ऐसा हाल मेरा भी है..!
मैं उन लोगों के लिए परेशान हूँ..
जो मेरे जाने पहचाने थे..!

कुछ तो कवि थे और हम एक-दूसरे की कविताएं अक़्सर पढ़ा करते थे..!

यूँ तो हमारी भाषाएँ भिन्न थी लेकिन ट्विटर ने सराहनीय कदम उठाए हैं जिस से हम एक-दूसरे की भावनाओं की अभिव्यक्ति और संस्कृति को विश्व पटल पर बखूबी समझने में सम्मृद्ध हैं..!

मेरी वेदना उनके लिए है जो महाविनाश भूकंप ग्रस्त लोगों को लील गई..!
तुर्कीए की काली सुबह लोगों के जीवन में अंधेरा कर गईं..!

मैं उन जाने पहचाने कवियों के लिए बेइंतहा फिक्रमंद रहती हूँ जो अब मुझे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने नहीं आते..।
दिल को यह नागवार गुजरी है मेरे कि मैं उन्हें कैसे श्रद्धांजलि अर्पित करूँ..?

दूसरा महीना भी खत्म होने को है मगर कहीं भी वो अब मुझे नज़र नहीं आते..!
बहुत भारी मन से मैं उन्हें खोज रही हूँ..!
काश वो सब फिर से नजर आएँ जैसे विनाशकारी भूकंप के पहले होते थे..!

काश वो जीवित हों और हालात से उबर पाएँ..!
मेरे मन के समन्दर में उठ रहे ज्वारभाटे को कुछ तो क़रार मिले..!

🥀 teres@lways 🥀