...

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“चाहत बदली, मन बदला"
देखो,,
चाहत बदली, मन बदला,
मगर गम नहीं बदला,,
हम पीटते रहे, सर मुसलसल,
मगर जुर्म नहीं बदला...

ये लज्जतों के उल्हानो ने,
रोक दिए जवानी के कस,,
अजीजों ने घर बदला,
आंखों का जहर नहीं बदला...

मैं चपेट में हूं इश्क तेरे,
वा-इज्जत मुझे बलि कर,,
फिरता रहूं, फिराक में जन-किसके ?
अभी तक, सफर नहीं बदला...

ओढ़े है तूने, कितने जिस्म,
न जाने बेवफा ?
हम पढ़े रहे, मुर्दों में मगर,
कफन नहीं बदला....
© #Kapilsaini