...

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मैं
हाँ! सही हैं ये मैं किसी एक की होकर नहीं रह सकती,
फितरत में मेरी हैं हरदम रंग बदलना,
पहेला रंग लिया मैने दूलार का,
माँ-पापा ने दिया उस प्यार का,
नाज़ो में रही मैं उसीमें पली-बढ़ी,
भैया की मेरे थी में छोटी सी परी,
बचपन युं ही बिता चढ़ा रंग जवानी,
चढ़ी रोम-रोम में नई सी एक ऱवानी,
राजकुमार कोई आने लगा सपनो में,
उस अनज़ाने को गिनने लगी अपनो में,
ले जाए मुज़को वो चांद की ड़ोली लाए,
प्यार देके अपना वो दूल्हन मूज़े बनाए,
दिन भी आया वो एक हज़ारो वाला,
आया ले जाने राजकुमार सपनोंवाला,
दूल्हन बनी मैं पहन के जोड़ा लाल,
चल पड़ी उसके साथ छोड़ कर मलाल,
अंतरमन में मेरे थे सपनें जिवन के हज़ार,
उसने भी दिया मुज़को प्यार बेशूमार,
आया मेहमान घर में किलकारी करता,
दे दिया माँ का रंग उसने उम्र भर का,
मेरे घर-आँगन में खिला उसका बचपन,
आ गया उनके साथ मेरा भी लड़कपन,
पढ़-लिख कर आगे बढ़कर किया नाम,
मैं भी उसके साथ रंग में रंग गई तमाम,
शादी करके उनकी बनी माँ से माँजी,
छोटे फरिश्तों की मैं हुं नानी-दादी,
कितनों की मैं होकर रही कितने मेरे अपने!
ईन्ही सब के साथ जुड़े हैं मेरे सभी सपने।
तभी तो कहती हुं,,
हाँ! सही हैं ये मैं किसी एक की होकर नहीं रह सकती।।।।
© Bansari Rathod ' ईश '