...

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अहसान
बहुत समझाया था मैने इसको,नादान ये दिल समझता कहां था
अहसान तुम्हारा जो तुमने बताया,कि तुमको मुझसे ...मोह़ब्बत नही है
फिर पूरा कसूर इस दिल को भी क्या दू़ं,था कितना त़न्हा.. कैसे बता दूं
कभी तो इसने ख्वाहिशें की थी,और मैने भी तो हामी भरी थी
मगर जानता था ज़माना है शातिऱ ,यहां आशिकों को रहमत़ नही है
अहसान तुम्हारा जो तुमने बताया,कि तुमको मुझसे... मोह़ब्बत नही है
हरगिज़ तुम्हारा कुसूर नही हैं,इस दिल का तो फ़ितूर यहीं है
कुसूर है मेरा जो इसे जोड़ता हूं,गैरों की प़नाह में फिर से छोड़ता हूं
मगर अब जो टूटा है तो बिखरा है ऐसा,कि अब फिर से जोड़ने की मुझमें हिम्मत नही है
अहसान तुम्हारा जो तुमने बताया ,कि तुमको मुझसे...मोहब्बत नही है
दर्द तो होता है जब सिसकियां लेता है,क्यों गैरों पे आके ज़ार-ज़ार होता है
कब समझेगा दिल ये ज़माने को आखिऱ,कोई नही तेरा ...सब हैं मुसाफ़िर
बेरहम़ ज़माने की फ़ितरत यहीं है,अब किसी पे आने की जरूरत़ नही है
अहसान तुम्हारा जो तुमने बताया,कि तुमको मुझसे....मोह़ब्बत नही है