...

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स्वाभिमान....
बेहतर तो कभी थे ही नही
बेहतरीन खुद को समझा नहीं

जिसकी जैसी नज़र थी
उस से ज्यादा कोई जाना नहीं

एक सीख ही जानी है
बताना पड़े, तो फिर हुनर नही

ना माने कोई तो क्या
सूरज में बची तपिश नहीं

ज़र्रे सा समझा है खुद को
तो क्या स्वाभिमान नहीं

झुक जाता है सिर इज़्ज़त में
दबाने का हक पर दिया नहीं


© * नैna *