...

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*** एहसास ***
*** कविता ***
*** एहसास ***

" इश्क ज़ाहिर ठहरा ,
मैंने उसका नाम अभी लिया नहीं ,
हसरतें मजलूम हैं वेशक ,
उसको कह दूं अभी ग्वारा नहीं ,
होने दें एहसास जरा उसको ,
इस ख्याल का भी कुछ ख्याल हो नहीं ,
इस हसरत भरी चाहत को ,
उसे समझने का अभी मौका नहीं ,
हैं वो मसगूल कहीं ,
दिल में उसके बात आये तो सही ,
कहने को कह तो दे ऐसे में ,
वो हंस गले लगाये तो सही ,
इश्क ज़ाहिर ठहरा ,
अभी वो चाहतों का मुकाम मिला नहीं ,
मैंने उसका नाम अभी लिया नहीं ,
उलझनें एहसास हैं उसका ,
उसे समझायेगा आख़िर कौन .

--- रबिन्द्र राम

© Rabindra Ram