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हाय रे मानव
स्वतंत्रता की चतुर्थ दशाब्दि में
भी मानव कुत्ते बन कुंडी में
पड़े झूठे पत्ते चाटते है
तो मन दुखता है मन तड़पता है
स्वतंत्रता की सुध विकास फूल है
तो मानव का यह रूप अवरोध का शूल है
तपना गलत भोगना हक समझते है
करते काम है कहते ज्यादा है
मटमैला घिनौना बदबूदार मानव
अब भी दिखता है पर हम हाय
कहते हलवा खाते जाते है तब क्यों न
लगेंगे काले बादल समता शशांक पर
मानव के इस भूखे रूखे पर
कई कवियों ने अपनी कलम तोड़ दी
कई नेताओ ने इन पर तकरीरे झाड़ दी
कई सुधारको ने शक्ति सारी बहा दी
कारण क्या दे सकते इसका हम
मानव अब भी भूखा कुता बन
लपक झूठा पत्ता झट चाटता है
रूप इसका बदलने मार्ग कोई ढूँढना है
सुनते हैं दुनिया के किसी भाग में
मानव का यह रूप दिखता नही है
यदि यह सच है तो हमें सोचना है
बीते चालीस साल के संबल से देखना है
© Kushi2212
भी मानव कुत्ते बन कुंडी में
पड़े झूठे पत्ते चाटते है
तो मन दुखता है मन तड़पता है
स्वतंत्रता की सुध विकास फूल है
तो मानव का यह रूप अवरोध का शूल है
तपना गलत भोगना हक समझते है
करते काम है कहते ज्यादा है
मटमैला घिनौना बदबूदार मानव
अब भी दिखता है पर हम हाय
कहते हलवा खाते जाते है तब क्यों न
लगेंगे काले बादल समता शशांक पर
मानव के इस भूखे रूखे पर
कई कवियों ने अपनी कलम तोड़ दी
कई नेताओ ने इन पर तकरीरे झाड़ दी
कई सुधारको ने शक्ति सारी बहा दी
कारण क्या दे सकते इसका हम
मानव अब भी भूखा कुता बन
लपक झूठा पत्ता झट चाटता है
रूप इसका बदलने मार्ग कोई ढूँढना है
सुनते हैं दुनिया के किसी भाग में
मानव का यह रूप दिखता नही है
यदि यह सच है तो हमें सोचना है
बीते चालीस साल के संबल से देखना है
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