...

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ऐ पुरूष, तुम अद्भुत हो!
तुम अद्भुत हो,
ऐ पुरूष,
बांध लेते हो
गांठ जिससे
इक बार चाह कर
दिल से,
हंसकर पूरे जीवन की
फिर तो ज़िम्मेदारी
उठा लेते हो,

प्रेम स्नेह की
गारंटी देते हो,
तुम कमियां हरते हो,
तुम खुशियां भरते हो,

जब तुम
सिन्दूर उठाते हो,
चुटकी भर,
फिर कोई अगर मगर नहीं,
फिर कुछ इधर उधर नहीं,
और भर देते हो
उसकी मांग
पूरे हक से,

पकड़ते हो हाथ उसका
फिर कस के,
जीवनपर्यंत साथ का ऐलान,
वादा करते हो,
ऐ पुरूष,
सचमुच, तुम अद्भुत हो,
अद्भुत करते हो!

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal