...

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“सच भी शर्मा जाता था"
मुझे जरूरत थी जमाने में, हद से गुजरने वाले की,
अब कोई, हद से गुजर गया है, तो अच्छा नहीं लग रहा,,

जब वो बोलते थे झूठ, तो सच भी शर्मा जाता था,
अब कोई सच बोलने वाला भी, सच्चा नहीं लग रहा,,

ये फुरकत भी एक चाल है, उनको पास लाने की,
नहीं तो तुमको पास बिठाने से, जी कच्चा नहीं लग रहा,,

कुछ बंदोबस्त ही हो जाए, कहीं तो दिल लग जाए,
यू खाली बैठा हूं मैं, किसी को अच्छा नहीं लग रहा,,

मेरे होने से भी क्या होना, और अचानक भी मैं मरा नहीं,
फिर खामखां यूं भीड़ बढ़ाना, अच्छा नहीं लग रहा....
© #Kapilsaini