...

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"बहुत खामोशी में रात गुजारी है कि "
बहुत खामोशी में रात गुजारी है कि,
सपने तेरे फिर से मुझसे रुठ जाए,
कहीं बंद आंखों में ही तुमसे मिल पाऊ,
और आंखें खुले कि फिर ये टूट जाए!!

किसी बन्द तिजोरी में कैद कर लिया है,
कि बेनाम हवा में फिर ना कहीं उड़ जाए,
बिखरी यादों को हौले से समेट लूं कि,
कहीं टूटें दिल की दास्तां से ना जुड़ जाए!!

मेरे घर का दरवाजा अभी भी खुला है,
कि तुम्हारी आहट कहीं और ना मुड़ जाए,
बहुत खामोशी में रात गुजारी है कि,
सपने तेरे फिर से ना मुझसे रुठ जाए!!
© Rohit Kumar Gond
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