...

4 views

जिंदगी की भाग दौड़........
कितना हसीन था ना हमारा बचपन
ना ज़िंदगी से कुछ पाने की ख्वाहिश ना ज़िंदगी से
जितने का जज्बा
ना ही पैसे से इतना लोभ और ना ही पैसे कमाने का कोई चस्का
जो भी मांगो पापा झट से से हाथ में रख देते थे
खिलौना मांगो और किसी कारण वश वो ना ला सके
तो खिलौना बन कर खुद वो खुद को हमारे साथ रख देते थे
खिलाती थी खाना मां कहीं गरम तो नही है खुद चख कर
बनाकर नचाती थी वो आटों की गुड़िया हमारे हाथो में रख कर
हमारे जरा से बीमार होने पर ना सोती थी चैन से वो
सहलाती थी वो हर पल मेरी एक खासी आ जाने पर
सुलाती थी वो हमे चैन की नींद खुद रातो में जगकर
फिर देखते ही देखते हम थोड़े बड़े हो गए
मतलब यही की अब हम खुद के पैरो पर खड़े हो गए
फिर प्राइमरी का वो विद्यालय जिसमे हमें ना अकल थी ना समझदारी
वहा शिक्षको के डांटने पर सारे शिक्षक से हमे बैर हो गया
ऐसा मानी की जैसे एक नादान बच्चे को उम्र कैद...