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जिंदगी की भाग दौड़........
कितना हसीन था ना हमारा बचपन
ना ज़िंदगी से कुछ पाने की ख्वाहिश ना ज़िंदगी से
जितने का जज्बा
ना ही पैसे से इतना लोभ और ना ही पैसे कमाने का कोई चस्का
जो भी मांगो पापा झट से से हाथ में रख देते थे
खिलौना मांगो और किसी कारण वश वो ना ला सके
तो खिलौना बन कर खुद वो खुद को हमारे साथ रख देते थे
खिलाती थी खाना मां कहीं गरम तो नही है खुद चख कर
बनाकर नचाती थी वो आटों की गुड़िया हमारे हाथो में रख कर
हमारे जरा से बीमार होने पर ना सोती थी चैन से वो
सहलाती थी वो हर पल मेरी एक खासी आ जाने पर
सुलाती थी वो हमे चैन की नींद खुद रातो में जगकर
फिर देखते ही देखते हम थोड़े बड़े हो गए
मतलब यही की अब हम खुद के पैरो पर खड़े हो गए
फिर प्राइमरी का वो विद्यालय जिसमे हमें ना अकल थी ना समझदारी
वहा शिक्षको के डांटने पर सारे शिक्षक से हमे बैर हो गया
ऐसा मानी की जैसे एक नादान बच्चे को उम्र कैद हो गया
फिर देखते ही देखते हम और बड़े हो गए
पहुंचे 6th standard में और हम दुनिया को समझने के योग्य हो गए
वहा मन लगने लगा दोस्तो के बीच
वहा दिन कटने लगा दोस्तो के हंसी मजाकों के बीच
फिर हम धीरे धीरे घर की नज़रों में लाडले से एक आम बच्चे हो गए
फिर पहुंचे हम जैसे तैसे 11th standard में
जहां कुछ पुराने दोस्त बिछड़ चुके थे
कई थे उसी विद्यालय में अलग strem से
तो कई विद्यालय छोड़ के ही जा चुके थे
फिर नई stream नए दोस्त सब कुछ नया था
वो बचपन में देखे सपने की बस आर्मी ऑफिसर बनूंगा
डॉक्टर बनूंगा पायलेट बनूंगा ये बस सपना रह गया
हकीकत में तो मेरे साथ मेरा हर एक दोस्त बस करने के लिए कोई भी नौकरी रह गया था
फिर नौकरी में खुद को इतना लगाया की घर को भूल ही गए
जिम्मेदारियां घर की इतनी बढ़ी कि यारी दोस्ती हंसी मजाक ये सब हम तो जैसे भूल ही गए
दुनियां से कुछ अलग करूंगा मैं ऐसा कहने वाले लड़के
12 करने के बाद बस दुनिया की ही भीड़ में शामिल हो गए
फिर पता ही नहीं लगा की ज़िंदगी को कामयाब बनाने के चक्कर में
हम हंस कर जीना तो भूल ही गए
पूरी ज़िंदगी लगा दी खुद को कामयाब बनाने में
कामयाबी जब हाथ आई तो उम्र गवां दी हमने दवाइयां कराने में
फिर देखते देखते घर का शहजादा बेटा जिम्मेदार हो गया
भुला कर वो अपने सारे सपने सारी हसरतें
अब हम अपने घर के बस एक उम्मीदवार ही हो गए







#ArtisticEmotions
© ठाकुर जी