...

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मेरी वेलेंटाइन
तुम मेरी वेलेंटाइन बनी हुई
अपना जीवन यूं खपाती रही
तुम जब बालों की लहराती थी
एक घनघोर काली घटा सी
छा जाती थी मेरे आगोश पर
तपती धूप में घनी छांव सी
मैं अनदेखी करता रहा हूं, जीवन भर

14 फरवरी के उन सभी दिनों को
जब सज संवर कर रहती थी प्रफुल्लित
इस इंतजार में कि मैं कोई गिफ्ट दूंगा
मैं चंपू बना रहा उम्र भर
गिफ्ट की महिमा से अनजान

मैं तुम्हारे मनोभाव को नहीं समझ कर
ना समझ बना रहा इस खास दिन पर भी
तुम्हारी उस अनकहे प्यार को
कभी कोई परिभाषा नहीं दे सका
सही मायने में तुम मेरी वेलेंटाइन थी
मैं तुम्हारा वेलेंटाइन नहीं बन पाया

तुम्हारी कोई खास डिमांड थी नहीं
कभी कोई विशेष पाने की जिद भी नहीं की
बस मैं ही गंवार बना रहा जो नहीं समझा
कि केवल दस रुपए के गोल गप्पे
तुम्हें अप्रतिम खुशी दे देते थे


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