...

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पहाड़ी इश्क
तुम काशी के घाट सी
और हम वहां बैठे साधु प्रिए,
छवि तुम्हारी शांत सी गंगा जैसी
परंतु हमे आता नही है तैरना प्रिए,
पड़ेगा तुम्हे ढूंढना गोकुल की गलियों मे
पर मिलोगी तुम शायद हिमालय की गोद में,
बहाने तो तुमने खूब मार लिए
अब हम कर के आयेंगे पूरी तैयारी प्रिए,
होगी तुम भक्त भोलेनाथ की
पर पार्वती तो तुम्हे हम ही बनाएंगे।

© sharma