पहाड़ी इश्क
तुम काशी के घाट सी
और हम वहां बैठे साधु प्रिए,
छवि तुम्हारी शांत सी गंगा जैसी
परंतु हमे आता नही है तैरना प्रिए,
पड़ेगा तुम्हे...
और हम वहां बैठे साधु प्रिए,
छवि तुम्हारी शांत सी गंगा जैसी
परंतु हमे आता नही है तैरना प्रिए,
पड़ेगा तुम्हे...