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ग़ज़ल
इशारों की भाषा हमारी समझते
कही अनकही बात सारी समझते
मिलाते जो हम से कभी आप नज़रें
पिये बिन जो आती खुमारी समझते
हो जब सामना साँस रुकती हमारी
बिना देखे ये बेकरारी समझते
न ही भूख लगती न ही नींद आती
मगर लोग इसको बीमारी समझते
ग़ज़ल जानते जो वही समझें ग़ज़लें
छुपी इसमें क्या होशियारी समझते
बहुत मतलबी है जहां 'दीप' फिर भी
हैं कुछ लोग जो सच्ची यारी समझते
© दीp
कही अनकही बात सारी समझते
मिलाते जो हम से कभी आप नज़रें
पिये बिन जो आती खुमारी समझते
हो जब सामना साँस रुकती हमारी
बिना देखे ये बेकरारी समझते
न ही भूख लगती न ही नींद आती
मगर लोग इसको बीमारी समझते
ग़ज़ल जानते जो वही समझें ग़ज़लें
छुपी इसमें क्या होशियारी समझते
बहुत मतलबी है जहां 'दीप' फिर भी
हैं कुछ लोग जो सच्ची यारी समझते
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