ग़ज़ल
इशारों की भाषा हमारी समझते
कही अनकही बात सारी समझते
मिलाते जो हम से कभी आप नज़रें
पिये बिन जो आती खुमारी समझते
हो जब सामना साँस रुकती...
कही अनकही बात सारी समझते
मिलाते जो हम से कभी आप नज़रें
पिये बिन जो आती खुमारी समझते
हो जब सामना साँस रुकती...