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शायरी और शायर
शायरी मिली शायर को महबूब खो कर आया
जो भी आया इश्क के रस्ते से वो रो कर आया
के अब तो होती है बरसात तो लगती कतरा है
मैं अपना वजूद यूं अश्कों में हूं डूबो कर आया
रूह तक पहुंच चुकी है बदबू मैले दामन की
मैं अपना जिस्म किसी जिस्म में पिरोकर आया
जो मुझको देता नही है जैब , पर मैं क्या करूं
हवस में पागल था "दीप" वो भी कर आया
तरस आता है सज्जा ए मौत मांगी , ना मिली
कैसे गुजरेगी तमाम उम्र, सोच दिल भर आया
© शायर मिजाज
जो भी आया इश्क के रस्ते से वो रो कर आया
के अब तो होती है बरसात तो लगती कतरा है
मैं अपना वजूद यूं अश्कों में हूं डूबो कर आया
रूह तक पहुंच चुकी है बदबू मैले दामन की
मैं अपना जिस्म किसी जिस्म में पिरोकर आया
जो मुझको देता नही है जैब , पर मैं क्या करूं
हवस में पागल था "दीप" वो भी कर आया
तरस आता है सज्जा ए मौत मांगी , ना मिली
कैसे गुजरेगी तमाम उम्र, सोच दिल भर आया
© शायर मिजाज
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