...

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!! ख़्वाहिश !!
ख़्वाहिश वो पिंजरा है
जहाँ से कोई कभी
आज़ाद नहीं होता
अनकही अनदेखी
अनजानी अनसुनी
अनसोची ख़्वाहिशें
चाहत को पिंजरे से
बाहर निकलने नहीं देतीं
ख्वाहिश वो पिंजरा है
जहाँ कई ख़्वाबों की
क़ब्र हक़ीक़त की ज़मीन में
हमेशा-हमेशा के लिए दफ़्न हो जाती है ......
© राजेश पंचबुधे