...

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ज़िंदगी…..
क्या तक़दीर खेल खेलती है,
मासूम सी ज़िंदगी में
कितनी चिंता बोझ झेलती है…

दिमाग़ से लेकर दिल की आहट तक,
ज़िंदगी वक़्त की सिर्फ़ रोटी बेलतीं है…

ख़ुद को बचाने के चक्कर में “ज़िंद”
यह ज़िंदगी किस-किस को
अपने संग मेलती है…

मक़सद है इसे अपने रास्ते पे सीधा चलने का,
मगर! कभी- कभी ज़िंदगी को
ज़िंदगी ही नकेलती है…

किसी के रूप में है खुश,
किसी के रूप में है चुप…
सूखों से लेकर दुःखों तक,
यह ज़िंदगी सब कुछ सहेड़ती है…

#जलते_अक्षर

© ਜਲਦੇ_ਅੱਖਰ✍🏻