...

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जुदाई
साहिल की रेत पर मेरी इक दुनीयाँ थी
इश्क की हमारे लिखी कहानीयाँ थी....

तुफाँ की मौज बिखरा गयी मेरा जहाँ
जहा कभी ऊल्फत की आराईयाँ थी....

ऐसा नही के तुम को मुहब्बत नही थी
जानता हुँ मै तुम्हारी भी मजबुरीयाँ थी....

याद है आज भी हमे वो पल जुदाई का
मजबुर दिलो मे खामोश सिसकीयाँ थी

मुकम्मल ना हो सका वो फसाना संदीप
रस्मो रिवाजो की ऊँची दिवारे दरमियाँ थी....
© संदीप देशमुख