...

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अंतिम समय
कुछ तो तुमसे रिश्ता है
यूँ हीं नहीं मेरा दिल तरसता है
यूँ तो बहुत लोग है मुझे कहने के लिए
बस मुझे तुम्हें ही सब कहने का दिल करता है

कितना भी कुछ पुराना हो
तुमको ही सब बताना हो
कुछ आज नया हुआ हो
तुम तक बस पहुंचाना हो

कभी कभी बस खामोश हो जाती
तेरी परेशानी समझ नहीं पाती
दिल जानता तो है तुम मशरूफ़ बहुत
पर ये मन को तसल्ली हो नहीं पाती

जाने तुम किस मुशिकल में घिरे हो
चाह कर भी तुम तक पहुँच नहीं पाती

फिर मन ही मन में न जाने कितना
कुछ सब कह जाती

काश मुझे भी तुम पर कोई हक होता
तो घडी घडी ये दिल न खोता

होती आज़ादी तुम्हे सब कह देने की
तेरे दिल की हर बात सु लेने की

दिनों दिन अब दूरियां बढ़ रही है
मेरी जान ऐसा लगता तन से निकल रही है

साँसो के रिदम ज़रा बदल रहे है
तेरी सूरत देखे बिन कितना तड़प रहे है

तुम एक वादा मुझसे करोगे ना
मेरे अंतिम समय में मिलोगे ना

© बावरामन " शाख"