...

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मेरी खामोशी की दुनियाँ थी
मेरी खामोशी की दुनियाँ थी, जहाँ ख्वाब भी सोए रहते थे,
हर रास्ता वीरान था, हर मंज़र अधूरे लगते थे।
सन्नाटों का बसेरा था, दिल के दरवाजे बंद थे,
जैसे जिंदगी के हर पन्ने को समय ने चुपचाप छंद दिए।

आंसुओं से भी अब रिश्ता टूटने को था,
जिंदगी से लड़ने का हौसला जैसे छूटने को था।
हर सुबह लगती थी जैसे रात का साया बानी,
खुद से भी डर लगता, हर रिश्ता पराया इतनी।

फिर अचानक वो आया, जैसे सूरज बादलों से झांके,
जैसे थके हुए परिंदों को मिले नए रास्ते।
उसके होने से राहत है, उसकी मुस्कान में...