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दर्द -ए-जुदाई
क्या बताएं दर्द-ए-जुदाई में क्या दिल का आलम है,
बाहर में भी लगता ख़िज़ाँ का मौसम है।
कभी देख आकर शब-ए-ग़म गुज़ारी है किस तरह,
तुम बिन चरागों की रौशनी भी लगती कम है।
इश्क की हर हद से गुज़र कर देखा हमने,
मुन्तज़िर आँखे ढूँढती तुमको ही हमदम हैं।
तुम बिन तन्हा हुआ है मोहब्बत का ये सफ़र,
लौट आ कि तू ही मेरे हर ज़ख्म का मरहम है।
तेरे रू-ए-मुनव्वर की एक झलक के लिए है ज़िंदा,
वरना अपनी ही लाश के बोझ से हुए हम बे-दम हैं।
बाद मेरे अगर तुम आओ तो फिर क्या फ़ायदा,
जब हम ही ना होंगे तो कैसा फ़िर ये मातम है।
बाहर में भी लगता ख़िज़ाँ का मौसम है।
कभी देख आकर शब-ए-ग़म गुज़ारी है किस तरह,
तुम बिन चरागों की रौशनी भी लगती कम है।
इश्क की हर हद से गुज़र कर देखा हमने,
मुन्तज़िर आँखे ढूँढती तुमको ही हमदम हैं।
तुम बिन तन्हा हुआ है मोहब्बत का ये सफ़र,
लौट आ कि तू ही मेरे हर ज़ख्म का मरहम है।
तेरे रू-ए-मुनव्वर की एक झलक के लिए है ज़िंदा,
वरना अपनी ही लाश के बोझ से हुए हम बे-दम हैं।
बाद मेरे अगर तुम आओ तो फिर क्या फ़ायदा,
जब हम ही ना होंगे तो कैसा फ़िर ये मातम है।
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