*हृदय_सन्ताप*
"विरक्त भाव" से भरी एक रचना
२१२२ २१२२, २१२२ २१२१
पंथ सूना आस सूनी, सून है सब चाह मीत।
व्यर्थ क्यों रस्ता निहारें, हिय भरे जब आह मीत।।
हम निपट पर जानते थे, कुछ करेगा भाग्य खेल।
अश्रु ही साथी बनेंगे, रूठ जायेगी उलेल।।
घाव हैं हिय के घनेरे, स्वप्न खंडित नैन नीर।
आस दीपक बुझ चुका है, किन्तु उर मेरा अधीर।।
श्वास तो बोझिल हुई अब, संग मन के भाव मौन।
किन्तु यह संताप कैसा, पूछता यह आज कौन।।
धुंधली–सी सांझ दिखती, प्रात किरणें भी उदास।
प्राण में तम घोर छाया, चांदनी खोती प्रभास।।
यह निशा तम की घनेरी, दूर मुझसे अब उजास।
चाहतें धूमिल हुईं सब, मृत्यु भी आए न पास।।
– – – – ऋषभ दिव्येन्द्र
#छन्द_व_ऋषभ
#शुद्धगीता_छंद
#उदास #पीर #हिंदी_कविता
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२१२२ २१२२, २१२२ २१२१
पंथ सूना आस सूनी, सून है सब चाह मीत।
व्यर्थ क्यों रस्ता निहारें, हिय भरे जब आह मीत।।
हम निपट पर जानते थे, कुछ करेगा भाग्य खेल।
अश्रु ही साथी बनेंगे, रूठ जायेगी उलेल।।
घाव हैं हिय के घनेरे, स्वप्न खंडित नैन नीर।
आस दीपक बुझ चुका है, किन्तु उर मेरा अधीर।।
श्वास तो बोझिल हुई अब, संग मन के भाव मौन।
किन्तु यह संताप कैसा, पूछता यह आज कौन।।
धुंधली–सी सांझ दिखती, प्रात किरणें भी उदास।
प्राण में तम घोर छाया, चांदनी खोती प्रभास।।
यह निशा तम की घनेरी, दूर मुझसे अब उजास।
चाहतें धूमिल हुईं सब, मृत्यु भी आए न पास।।
– – – – ऋषभ दिव्येन्द्र
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