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*हृदय_सन्ताप*
"विरक्त भाव" से भरी एक रचना
२१२२ २१२२, २१२२ २१२१


पंथ सूना आस सूनी, सून है सब चाह मीत।
व्यर्थ क्यों रस्ता निहारें, हिय भरे जब आह मीत।।

हम निपट पर जानते थे, कुछ करेगा भाग्य खेल।
अश्रु ही साथी बनेंगे, रूठ जायेगी उलेल।।

घाव हैं हिय के घनेरे, स्वप्न खंडित ...