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नीड़


आज फिर उस पार जाना.
आज फिर उस पार जाना.

तिमिर का साम्राज्य गुरुतर,
व्याप्त है चहुदिशि अमावस
रात है घनघोर कालिम ,
निज- अनिज पर कुछ नहीं वश
कष्ट -कंटक से भरे पथ,
रश्मि का पाथेय दुर्लभ
एकला चलकर निरंतर, अग्निपथ का अंत पाना
आज फिर उस पार जाना.

लुप्त है सब विधि सरसता ,
शुष्क है मन का कमल-दल
आत्मा की मीन व्याकुल ,
ढूंढ़ती गुरुतर सरोवर.
छू सके नि:सीम नभ को,
स्नेह के सोपान चढ़कर
किन्तु दुष्कर लग रहा है सूर्य से आँखे मिलाना
आज फिर उस पार जाना..

त्याग के इस लय - निलय में,
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