डोरियां
बाँधा मुझे इतने सलीखे से गया हैं,
की तोड़ दू कैसे वो डोरियाँ,
छूट ना जाए ढील उन डोरियों की यू कहीं,
की भागने की कोशिश में,
फस ना जाये गला मेरा।
साँसें लेने की इजाजत,
और ख्वाव बुनने का दरिया,
सिमटा हैं उन डोरियों में,
बाहर निकलने के लिए बड़ाऊ एक कदम,
और अगर मैं,
तो तीखी धार डोरियों की काट दे शरीर मेरा।
लहुलुहान मैं उन डोरियों से,
जकड़न बड़ रही उन डोरियों की,
साँस चड रही धीरे-धीरे,
कब तक अपने जख्म,
उस हल्के कपड़े से छुपाऊ मैं।
मरहम मिला नहीं कोई,
जो भर दे घाव मेरे,
ताजा जख्म चीर रहे दिल मेरा,
ये डोरियों को काटु कैसे,
जो सोख ले ना खून मेरा।
© shivika chaudhary
की तोड़ दू कैसे वो डोरियाँ,
छूट ना जाए ढील उन डोरियों की यू कहीं,
की भागने की कोशिश में,
फस ना जाये गला मेरा।
साँसें लेने की इजाजत,
और ख्वाव बुनने का दरिया,
सिमटा हैं उन डोरियों में,
बाहर निकलने के लिए बड़ाऊ एक कदम,
और अगर मैं,
तो तीखी धार डोरियों की काट दे शरीर मेरा।
लहुलुहान मैं उन डोरियों से,
जकड़न बड़ रही उन डोरियों की,
साँस चड रही धीरे-धीरे,
कब तक अपने जख्म,
उस हल्के कपड़े से छुपाऊ मैं।
मरहम मिला नहीं कोई,
जो भर दे घाव मेरे,
ताजा जख्म चीर रहे दिल मेरा,
ये डोरियों को काटु कैसे,
जो सोख ले ना खून मेरा।
© shivika chaudhary