...

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अब करो ना!
करते थे वातावरण से खिलवाड़ समझकर व्यापार
अब करो ना!
नदी नहरों में डाल रहे थे कूड़ा विश्वभर का पूरा
अब करो ना!
भगवान को करने खुश करते थे पूजा पाठ निरंकुश
अब करो ना!
मोटर गाड़ी पर भ्रमण किया करते थे प्रदूषण
अब करो ना!
बिना परवाह प्रकृति की चलाते थे अपनी संस्कृति
अब करो ना!
काट रहे थे निरंतर पेड़ बनाने को शहर ढेर
अब करो ना!
ना हुआ करता था वेट हो रहे थे जो लेट
अब करो ना!
खूब किया भ्रष्टाचार किया असहायों पर अत्याचार
अब करो ना!
घमण्ड, ईगो और अहंकार में ना किया था अलंकार
अब करो ना!
अमीरी-गरीबी और जात-पात जपा करते थे जो तुम पाठ
अब करो ना!
जो होगा देखा जाएगा ताकत अपनी यूही अजमाएगा
अब करो ना!
देश प्यारा अपना छोड़ निकलते थे कमाने एक छोर
अब करो ना!

बीमारी नहीं सबक हैं
मानव जाती का विनाश अब दूर नहीं हैं
समझ जाओगे तो जी जाओगे
अन्यथा भू लोक से अदृश्य हो जाओगे

प्रकृति की निःस्वार्थ सेवा ही असल पूजा हैं।
भगवान, खुदा, ईश्वर, गॉड आदि
ना ही मंदिरो में हैं, ना ही मस्जिदों अथवा गुरुद्वारों में हैं
अपितु मनुष्य-मनुष्य में हैं, प्रकृति के हर एक कण में हैं

मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे आदि स्वयं मनुष्य के ही बनाए हैं
पर प्रकृति जनजाति के लिए कुदरत कि देन हैं
मंदिर, मस्ज़िद, गुरुद्वारे आदि फिर से बनाए जा सकते हैं
लेकिन प्रकृति पर नियंत्रण मनुष्य के सामर्थ्य में नहीं

मनुष्य से प्रकृति नहीं अपितु प्रकृति से मनुष्य हैं
प्रकृति ही मानव जाति के जीवन का एकमात्र साधन हैं
प्रकृति को मानव जाति से जो कुछ मिलेगा
प्रकृति दोगुना मानव जाति को लौटाएगी
#lawsacerdos
#Life