...

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मुस्कुराती सुबह
सुबह उठते सूरज से मिले
गिले सिकवे उससे ही कहे
फिर गौर से उसको देख रहे
वो चमचमाता सा हर पल रहे

इनके जहन में ये सवाल रहे
ये सूरज क्यू इतना खुश दिखे
फिर नजरे उठा ये पूछने चले
नजरे मिलाने की हिम्मत ना हो

झुकी नजर सूरज से कहे क्यू
मेरी हालात पे मुस्कुराते हो
मेरे गमों से परदा हटाते हो
मुझसे नजरे क्यू छुपाते हो

सूरज ने कहा तुम मानव कितना
डरते हो अपने हालत से भागते हो
मुझे देखो मैं रोज आता हूं हालत
से अपने लड़ता हूं मुझे रोके

बादल बदरी सब मैं फिर भी
उजाला करता हूं कुछ सीखो
गर मुझसे तो ये डट कर चलना
मुस्कुराते हुए औरों को चुप
कराते हुए वक्त को न गवाते हुए
जीवन को जियो मुस्कुराते हुए