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एक दीपक जला देहरी पर रात भर ...
एक दीपक जला देहरी पर रात भर ...
लौ दिए की मचलती रही रात भर ..
मेरे आंगन मे सावन बरसता रहा ..
आंखें प्यासी की प्यासी रही रात भर ..
मेरे रेशम से गेसु गुंथे सांझ ने ..
पर कोई उनमे उलझा रहा रात भर ..
लाख श्रृंगार करती रही चांदनी ..
पांव महावर से जलते रहे रात भर..
उसका आना और हंसना रकीबों के घर ..
मुझ पर बिजली गिराते रहे रात भर ..
-Aparna
लौ दिए की मचलती रही रात भर ..
मेरे आंगन मे सावन बरसता रहा ..
आंखें प्यासी की प्यासी रही रात भर ..
मेरे रेशम से गेसु गुंथे सांझ ने ..
पर कोई उनमे उलझा रहा रात भर ..
लाख श्रृंगार करती रही चांदनी ..
पांव महावर से जलते रहे रात भर..
उसका आना और हंसना रकीबों के घर ..
मुझ पर बिजली गिराते रहे रात भर ..
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