...

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बहुत कम लोग समझेंगे
ख़फ़ा क्यों है यहाँ मौसम बहुत कम लोग समझेंगे
तुम्हारे दर्द का आ़लम बहुत कम लोग समझेगें

हँसे क्यों हो सबब इसका हर इक दिल जान जाएगा
हुई क्यों हैं निगाहें नम बहुत कम लोग समझेंगे

तुम्हारे घर की ख़ुशियों में ये ह़िस्सा बाँट खाएँगे
तुम्हारा ग़म मगर हमदम बहुत कम लोग समझेंगे

करिश्मा कह दिया जाएगा तेरी कामयाबी को
लगाया तूने जो दम-ख़म बहुत कम लोग समझेंगे

दिलों की रजिशें चेहरों से ज़ाहिर तो नहीं होती
ये कोई राज़ है जानम बहुत कम लोग समझेंगे

तुम्हारे तंज़िया लहजे से ह़ाल-ए-दिल बयाँ होना
नमक है या कोई मरहम बहुत कम लोग समझेंगे

मुसलसल दर्द की शिद्दत से काली शब की पलकों पर
ये आँसू हैं या फिर शबनम बहुत कम लोग समझेंगे