...

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मैंने दुनिया एक बनाई।
मैंने दुनिया एक बनाई
तुमने मुझको बांट दिया

मैं तो तुम सब का था
क्यो टुकड़ों में काट दिया

दुनिया थी एक कोरा कागज
लकीरों में उसे बांध दिया

तुम सा एक बनाया मैंने,
एक बनाया तुमको साथ
रूप रंग में खो गए,
असली स्वरूप
मेरा तुम भूल गए।

मुझको तुमने रंग दिया,
हरित रक्त और स्वेत से।

भूल गए बनाया तुम सबको,
मैंने एक ही रेत से ।

चार घरों में बैठा हूं,
अपनी पहचान खो बैठा हूं ।

सुनो कहता एक बात में ,
मन नहीं लगता मेरा जात पात में ।

क्यों करते हो इंकार,
ना बांटो मुझे बारंबार।

तुम जैसा बस एक बनाया,
मुझ जैसे क्यों बनाई हजार।

क्रोध क्रोध में लोग भोग में
चारों ओर नचाया काल।

खुद ही खुद में मर रहे हो
आपस में ही जल रहे हो।

नियम मेरे तोड़ रहे हो ।
रुत मेरी तुम तोड रहे हो ।
अपनी पहचान खो रहे हो ।
अपना मतलब जोड़ रहे हो ।
मुझे टुकड़ों में तोड़ रहे हो।

तुम्हारे पापा ने अतका दिया
शलीख पे मुझको लटका दिया।

मैंने दुनिया एक बनाई
तुमने मुझको बांट दिया ।

मैं तो तुम सब का था
क्यों टुकड़ों में काट दिया।

© abgi_rag poetries